Saturday, March 16, 2013

डर की चिडीयां

शाम की दहलीज पर एक चिडिया


आके बैठी मेरे खिडकी पर

चिडीया जैसी चीडिया थी

सीधीसी पर बढिया थी

देख रही इधर-उधर डर के

कोई आ न जाये इस घर से

मैने सोचा कुछ दाने डालूं इसे

पर हिला तक नही बैठा रहा चुप से

शायद उसका डर मै ही था और मेरा भी

फिर एक ख़याल आया,

"बैठी होगी थक कर घर को लौटते हुवे"

मै झट से ऊठा और उसे डराया

'अंधेरा होने से है' कहके उसे भगाया

अब पहुंचही जायेगी अंधेरा होने से पहले

ऐसा कई बार हुवा है मेरे साथ भी पहले

-सत्यजित

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