शाम की दहलीज पर एक चिडिया
आके बैठी मेरे खिडकी पर
चिडीया जैसी चीडिया थी
सीधीसी पर बढिया थी
देख रही इधर-उधर डर के
कोई आ न जाये इस घर से
मैने सोचा कुछ दाने डालूं इसे
पर हिला तक नही बैठा रहा चुप से
शायद उसका डर मै ही था और मेरा भी
फिर एक ख़याल आया,
"बैठी होगी थक कर घर को लौटते हुवे"
मै झट से ऊठा और उसे डराया
'अंधेरा होने से है' कहके उसे भगाया
अब पहुंचही जायेगी अंधेरा होने से पहले
ऐसा कई बार हुवा है मेरे साथ भी पहले
-सत्यजित
आके बैठी मेरे खिडकी पर
चिडीया जैसी चीडिया थी
सीधीसी पर बढिया थी
देख रही इधर-उधर डर के
कोई आ न जाये इस घर से
मैने सोचा कुछ दाने डालूं इसे
पर हिला तक नही बैठा रहा चुप से
शायद उसका डर मै ही था और मेरा भी
फिर एक ख़याल आया,
"बैठी होगी थक कर घर को लौटते हुवे"
मै झट से ऊठा और उसे डराया
'अंधेरा होने से है' कहके उसे भगाया
अब पहुंचही जायेगी अंधेरा होने से पहले
ऐसा कई बार हुवा है मेरे साथ भी पहले
-सत्यजित
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